सं.स्त्री.
सं.
1.धन की अधिष्ठात्री, लक्ष्मी--देवी।
- उदा.--ईडरिया आचार री, चढ़ै तो वेळ। हसत चढ़ै चारण हुवै, माया सरसत मेळ।--बां.दा.
2.द्रव्य, धन, सम्पत्ति, वैभव। (अ.मां., नां.मा., ह.नां.मा.)
- उदा.--1..देखी जे सूंमां द्रुमां, एकी प्रकत अंभग। जड़ माया घर में जिते, इते प्रफूलत अंग।--बां.दा.
- उदा.--2..सती बळै जूझै सुभट, करै ग्रंथ कविराज। दाता माया ऊधमैं, नांम उबारण काज।--बां.दा.
- उदा.--3..इसी माया के कांम री जे खरचै न खावै, ना वात मौि लगावै। अर इसी माया ही के कार री जके प्रीत गिणै न नीत, आपौ गिणै न मुलायदौ, कोरौ परसंगी रौ जी दुखावै। का वात नै अर का सुवाद नै। माया रौ रंग तांना--तैया में नहीं, नांम अर कांम में होणौ चाहीजै।--दसदोख
- उदा.--4..एक बेटा रै जीवतां उण री मां नै औ विखौ काढणौ पड़्यौ, धिरकार है उण रा जीवणा नै। लांणत है उण री माया संपत नै।--फुलवाड़ी
- उदा.--5..माया का सुख पंच दिन, गरव्यौ कहा गंवार। स्वप्ने पायौ राजधन, जात न लागै वार।--दादूबांणी
- उदा.--6..दादू माया का बळ इदेखकर, आया अति अहंकार। अंध भया सूझे नहीं, का कर है सिरजन हार।--दादूबांणी
- उदा.--7..'हरीया' माया जोडि करि, गाडी गोडै हेठ। माशया इत की इत रही, आप गये करि वेठ।--स्री हरिरांमदास जी महाराज 3़.ईश्वर की एक काल्पनिक अलौकिक शक्ति, जिसके द्वारा बाह्य जगत की रचना एवं भौतिक पदार्थों का निर्माण हुआ है। अपने प्रभाव के कारण यह जीव को ब्रह्म से दूर रखती है। (वेदान्त)
- उदा.--1..दादू माया सब गहले किये, चौरासी लख जीव। ताका चेरी क्या करे, जे रंग रातें पीव।--दादूबांणी
- उदा.--2..बाजीगार की पूतळी, ज्यों मरकट मोह्या। दादू माया रांम की सब जगत विगोया।--दादूबांणी
- उदा.--3..माया मैली गुण मई, घर घर उज्वल नांम। दादू मोहै सबन कौ, सुर नर सब ही ठांम।--दादूबांणी
- उदा.--4..'हरीया माया रांम की, महा अपर बळ होय। मेरी मेरी करि गया, साथि न चाली सोय।--स्री हरिरांमदास जी महाराज
- उदा.--5..'हरीया' माया मोहनी, मोह्या सुर नर नाग। एक न मोह्या रांम जन, उर उपज्या वैराग।--स्री हरिरांमदास जी महाराज
4.सृष्टि की उत्पत्ति का मूल कारण।
- उदा.--1..प्रथ जळ जळाकार हुतौ। तिहां निरंजन निराकार वडपा मांहि पौढिया हुता। तदा मन माहि इच्छा ऊ पनी जु सृष्टि उपाजिसु। तदा मनसा देवी माया तै ऊपनी। माया थकी थोक दुइ ऊपना, इात्मा एक। द्वितीयौ परमात्मा। ताहरापं माया सेती जु मिल्यौ ते जीवात्मा (अर) माया थकी जु भिन्न रह्यौ ते परमात्मा।--द.वि.
- उदा.--2..मन मनसा माया रती, पंच तत्व परकास। चौदह तीनों लोक सब, दादू होइ उदास।--दादूबांणी
5.शैव मतानुसार मन को बांध रखने वाले चार पासों में से एक।
- उदा.--माया फांसी हाथ लै, बैठी गोप छिपाइ। जे कोई धीजै प्रांणियां, तांहि के गळ बांहि।--दादूबांणी
6.मन के 24 दुष्ट विकारों में से एक विकार। (बौद्ध)
- उदा.--1..दाइ माया सौं मन बीगड़ा, ज्यों कांजी कर दुद्ध। है कोई संसार में, मन कर देवै सुद्ध।--दादूबांणी
- उदा.--2..माया पापनि पैस करि, कीया कळेजै धाव। 'हरीया' बौह बळिबंतु कुं रक न पहुंचै राव।--स्री हरिरांमदास जी महाराज
7.छल, कपट, धोखा, प्रवचना।
8.जादू का खेल बाजीगरी, ऐन्द्रजाल।
9.अविद्या, अज्ञान, भ्रम, मोह।
- उदा.--माया विसरी बेलड़ी, 'हरीया' पसरी दूरि। केताई फळ कारणै, रह्या विसूरि।--स्री हरिरांमदास जी महाराज
10.भ्रम या मोह वश होने वाला अनुराग, आसक्ति, ममत्व।
- उदा.--1..मावीतां तणी इसी ताइ माया, ध्यांन रहइ धर प्रांण आधार। वाधइ सायर वळे ज्युं ही विप्र, वासुर वरस तणइ विस्तार।--महादेव पारवती री वेलि
- उदा.--2..जीवों मांहीं जिव रहै, ऐसा माया मोह। सांई सूधा सब गया, दादू नहिं अंदोह।--दादूबांणी
- उदा.--3..ऊतरता एता भला, माया मोह विकार। रांम न मना उतारियौ, जन हरीया छिन वार।--स्री हरिरांमदास जी महाराज
12.मिथ्या या अवास्तविक धारण।
- उदा.--'हरीया' माया कीच मैं, केताई कळीयाह। जे कोई निकसै बापड़ौ, सतगुर सैं मिळियाह--स्री हरिरांमदास जी महाराज
13.कोई गूढ़ या विलक्षण बात जो आसानी से नहीं जानी जा सके।
- उदा.--झीणी माया लीण हुय, रही प्रांण सुं रचि। सिध सिन्यासी जोगना, गए मुनि तन पचि।--स्री हरिरांमदास जी महाराज
14.लालच, लोभ।
- उदा.--1..माया करि करि मानवी, मन में मोटी आस। 'हरीया' पांणी ओस का, पीयां मिटै न प्यास।--स्री हरिरांमदास जी महाराज
15.मन की वृति, वासना।
- उदा.--1..मन हस्ती माया हस्तिनी, सघन वन संसार। ता में निरभय हो रह्या, दादू मुग्ध गंवार।--दादूबांणी
- उदा.--2..दादू माया मगन जु हो रहे, हम से जीव अपार। माया मांही ले रही, डूबै काळी धार।--दादूबांणी
16.भोग विलास की सामग्री।
- उदा.--1..माया सौं मन रत भया, विसय रस ाता। दादू साचा छाड कर, झूठें रंग राता।--दादूब णी
- उदा.--2..यों माया का सुख मन करै, स्यया स दरि पास। अंत काळ आया गया, दादू होउ दास।--दादूबांणी
17.झंझट, झमेला, प्रपंच
- उदा.--1..बात सुणतां ई माळण री तौ इचरज सूं आंख्यां फाटी री फाटी रै'गी। हे रांम! औ कांई खिलकौ व्हियौ अबै कीक इण माया सूं फंद कटैला।--फुलवाड़ी
- उदा.--2..माया विसरी वेलड़ी, अंधा रह्या अळूझि। जन 'हरिया' से जानि कै, चाल्या देख सळूझि।--स्री हरिरांमदास जी महाराज
18.तांत्रिक चमत्कार।
- उदा.--1..आ तौ उण सपना वाळा बाग में हीडती अपछरा है। रांम जांणै आ कांई माया है। कांई चाळौ है।--फुलवाड़ी
- उदा.--2..उण रै वास में निसंक आय नै मूंडकी नै धड़ सूं चेपणी अर यूं म्हारै सांमी मुळकतौ जोवणौ, अवस आ कोई देंतां उपरली माया है।--फुलवाड़ी
19.रचना, लीला, खेल।
- उदा.--1..माया सोह सांमट बाळ--मुकुंद। सूतौ बड़--पांन समाधि समद।--ह.र.
- उदा.--2..तूं हीज भांजै तूं घड़ै, पोसै त्रिपुराया। दुनियां में दीसै तिका, सह थारी माया।--गजउद्धार
- उदा.--3..आ सगळी माया अर औ सगळौ परताप इण जीव रौ ई है।--फुलवाड़ी
20.दैविक चमत्कार।
- उदा.--1..अमरं एकु पयडउ हूउ बोलइ सांभलिणाह। ए माया सवि मइं करी क्रत्या राखे वाह।--सालिभद्र सूरि
- उदा.--2..कवण अखैवड़ विगर, प्रळै सागर सिर सोभै। कवण विनां सुखदेव, देव माया नह लोभै।--रा.रू.
21.सृष्टि, संसार, जगत।
- उदा.--1..अनळ पंखि आकास को, माया मेर उलंध। दादू उलटै पंथ चढ, जाइ विलंबै अंग।--दादूबांणी
- उदा.--2..यहु सब माया मिरग जळ, झूठा झिळामिळ होइ। दादू चिळका देखकर, सत कर जांणा सोइ।--दादूबांणी
- उदा.--3..दादू नैनहुं भर नहीं देखिये, सब माया का रूप। तहं ले नैना राखियै, जहं हे तत्त्व अनूप।--दादूबांणी
22.ठाट--बाट।
- उदा.--माया देखे मन खुसी, हिरदै होइ विकास। दादू यह गति जीव की, अंत न पूगै आस।--दादूबांणी
23.सांसारिक बन्धन।
- उदा.--1..दादू झूठी काया झूठ घर, झूठा यहु परिवार। झूठी माया देखकर, फूल्यौ कहा गंवार।--दादूबांणी
- उदा.--2..माया बंधक बांण ज्युं, मारै अंग लगाय। जन 'हरीया' तिंह लोक मैं, भाजि किती लग जाय।--स्री हरिरांमदास जी महाराज
- उदा.--3..बेटी रै जोग वर सारू म्है इण माया में झिलियौ रह्यौ। अबै म्हैं म्रत--लोक रौ वास करणौ चावूं।--फुलवाड़ी
25.दुष्टता, मन की कुटिलता। (जैन)
26.प्रज्ञा, बुद्धि, ज्ञान।
27.शक्ति, दुर्गा, देवी।
- उदा.--सच्चिदांनंद व्यापक सरब, इच्छा तिण में ऊपजै। जगदंब सकति त्रिसकति जिका, ब्रह्म प्रकृति माया बजै।--मे.म.
28.वैष्णवों के अनुसार विष्णु की नौ शक्तियों में से एक।
31.सप्त पुरियों में से एक पूरी का नाम। (अ.मा.)
- उदा.--प्रथम अजोध्यापुरी, बहुरि मथुरा अरु माया। कासी कांती प्रसिद्ध, मुकत पाई जे आया।--गजउद्धार
32.एक वणिक छन्द जिसमें, प्रथम पांच गुरु, फिर एक सगण, भगण अंत में दो गुरु होते हैं।
32.देखो 'माया' (रू.भे.)
- उदा.--1..आय बइठा माया तणइ आगळि, भरिया थाळ रतन बहु ांति।--महादेव पारवती री वेलि
- उदा.--2..दिख राजा आगळि दाखियउ, रा ज परीछउ काइ रुख। अचरिज सहु हियउ अंतेउरि, माया जरइं बोलिया मुख।--महादेव ारवती री वेलि
33.देखो 'मया' (रू.भे.)
- उदा.--जिण णि रुदन दया मानि जांणि। आस्रम रिख माया जित ांणी।--सू.प्र.
विशेष विवरण:-वेदान्त दर्शन के अनुसार ब्रह्म की अलौकिक शक्ति से ही हमें यह दृश्य जगत दिखाई देता है। पुराणों में इसी शक्ति (माया) में चेतन धर्म का आरोप करके इसे स्त्री रूप में ब्रह्म की सहधमिणी माना है। इसी कारण प्राणियों को अवस्तु में वस्तु, अस्वाभाविक में स्वाभाविक व मिथ्या में सत्य का आभास होता है। एक अन्य मत के अनुसार इसे अधर्म की पुत्री माना है और इसकी माता का नाम मृषा कहा है। ब्रह्म को इसका भाई बताया है जिसके संसर्ग से इसे लोभ एवं विकृति नामक दो पुत्रा की उत्पत्ति हुई। सृष्टि निर्माण के समय ब्रह्मा ने इस ी सहायता ली जिससे निम्नलिखित सात वस्तुओं या शक्तियों का निर्माण किया गया:--(1) गायत्री--जिससे समस्त वेदों का निर्माण हुआ, तदनन्तर वेदों के द्वार सेसार का निर्माण हुआ। (2) सत्यवती--जिससे जीव पोष क वनस्पत्तियों एवं समस्त औषधियों का निर्माण हु ा। (3)ज्ञानविद्य--इससे सारे शास्त्रों का निर्माण हुआ। (4) लक्ष्मी--इससे वस्त्र एवं आभूषण उत्पन्न हुऐ। (5)उमा--इसने शिव की सहायता से समप्त शास्त्रों क भूलौक में प्रसार किया। (6) वणिका--इसने समस्त स ष्टि का भार अपने ऊपर लिया। (7) धर्म द्रवा--यह नदी थी जा आगे चलकर गुंगा के नाम से प्रसिद्ध हुई। वस्तुत: माया एक मूत्मिान भ्रम है जो प्राणियों को भुलांवा द कर ईश्वर से विमुख रखती है। जितने कार्य, बातें या पदार्थ वास्तव में कुछ और होते है और दखने में कुछ और होते इसका अंतर ही माया