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रंजण  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.रञ्जनम्‌, प्रा.रंजण
1.रंगने की क्रिया या भाव।
2.चित्त को प्रसन्न करने की क्रिया या भाव।
3.आनन्द, हर्ष।
4.पित्त।
5.लाल चन्दन की लकड़ी।
6.मूंज।
7.सोना, स्वर्ण।
8.जायफल।
9.कमीला नामक वृक्ष।
10.छप्पय छन्द का एक भेद जिसमें 21 गुरु व 110 लघु कुल 152 मात्राएं होती हैं। मतान्तर से छप्पय छन्द का बावनवां भेद जिसमें 19 गुरु तथा 114 लघु कुल 152 मात्राएं होती हैं।--र.ज.प्र., वि.--
1.रंज या उदासी मिटाने वाला, आनन्द व खुशी देने वाला।
  • उदा.--1..मंत्रीसर धरि आवीउ सयल लोक रंजण सुलक्खण। पूरव पुण्य पसाउ लइ त्रिण्णि नारि विलसइ वि अक्खणि।--हीराणंद सूरी,
  • उदा.--2..दुखियां नैं सुख ना दातार। भय भंजण रंजण अवतार।--वृ.स्त.,
  • उदा.--3..चंदण देह कपूर रस, सीतळ गंग प्रवाह। मन रंजण तन उल्हवण, कदै मिळेसी नाह।--ढो.मा.2 पालन-पोषण करने वाला।
  • उदा.--जगत ठांम जग सांमि, जगत रोपण जग रंजण। जग वंदण जग जेठ, जगत भेदण जग भंजण।--पीरदांन लाळस
3.शान्ति या संतोष देने वाला।
  • उदा.--वाद भणी विद्या भणी जी, पर रंजण उपदेस। मन संवेग धर्‌यउ नहीं जी, किम संसार तरेस।--स.कु.
रू.भे.
रंजन।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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