सं.पु.
सं.रञ्जनम्, प्रा.रंजण
1.रंगने की क्रिया या भाव।
2.चित्त को प्रसन्न करने की क्रिया या भाव।
10.छप्पय छन्द का एक भेद जिसमें 21 गुरु व 110 लघु कुल 152 मात्राएं होती हैं। मतान्तर से छप्पय छन्द का बावनवां भेद जिसमें 19 गुरु तथा 114 लघु कुल 152 मात्राएं होती हैं।--र.ज.प्र., वि.--
1.रंज या उदासी मिटाने वाला, आनन्द व खुशी देने वाला।
- उदा.--1..मंत्रीसर धरि आवीउ सयल लोक रंजण सुलक्खण। पूरव पुण्य पसाउ लइ त्रिण्णि नारि विलसइ वि अक्खणि।--हीराणंद सूरी,
- उदा.--2..दुखियां नैं सुख ना दातार। भय भंजण रंजण अवतार।--वृ.स्त.,
- उदा.--3..चंदण देह कपूर रस, सीतळ गंग प्रवाह। मन रंजण तन उल्हवण, कदै मिळेसी नाह।--ढो.मा.2 पालन-पोषण करने वाला।
- उदा.--जगत ठांम जग सांमि, जगत रोपण जग रंजण। जग वंदण जग जेठ, जगत भेदण जग भंजण।--पीरदांन लाळस
3.शान्ति या संतोष देने वाला।
- उदा.--वाद भणी विद्या भणी जी, पर रंजण उपदेस। मन संवेग धर्यउ नहीं जी, किम संसार तरेस।--स.कु.