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सबदकोस – निवेदन – उदयराज उज्ज्वल

।।दूहा सोरठा।।
नारायण भूले नहीं, अपणी मायाईश।
रोग पैल आखद रचें, जगवाला जगदीश।।1।।
साच न बूढो होय, साच अमर संसार में।
कैतो धोबो कोय, ओ सेवट प्रकटै ‘उदय’।।2।।
सेवा देश समाज, धरती में साचो धरम।
इण सूं पूरै आज, सकल मनोरथ सांवरो।।3।।
साहित री सेवाह, सेवा देश समाज री।
आवे इण एवाह, ईशर कीरपा सू उदय।।4।।
सत ऊजल संदेश, उदयराज उजल अखे।
दीपै वांरा देश, ज्यांरा साहित जगमगे।।5।।

भारत संसद में सन् 1950 रे करीब देश री दूसरी सगला प्रान्ता री भासावां मानी गई उणां रे सामल राजस्थानी भाषा ने नहीं मानी तो कुदरती तौर सूं राजस्थान में अपणी भासा राजस्थानी ने मान्यता दिरावण सारु आन्दोलन पत्रों में शुरू हुवो।

राजस्थानी रे विरोध में अकसर आ बात कही जाती के इण रो कोई आधुनिक कोश नहीं हो। ओ घाटो मिटावण सारु में श्री सीतारामजी लालस ने क्यो क्योंकि हूँ जाणता हो के डिंगल रा शब्द संग्रह रो उणां ने काफी अनुभव है। श्री सीतारामजी इण काम सारु तैयार हो गया ने म्हें दोनु सामिल होय ने पूरा सहयोग से मैनत सूं कोश रो काम शुरू कियो ने इण में खर्च री मदत री जरूरत हुई तो उसा बाबत म्हें स्वर्गीय ठाकुर श्री भवानीसिंहजी साहब बार एटला पोकरण ने अरज करी। इणां कृपा करने मंजूर करी ने तारीख 1-5-51 सूं रुपीया री मदद देणी चालू कर दीवी। सीतारामजी मथाणिया में लेखक राख ने काम शब्द संग्रह री स्लिप कोपियां लिखावण रो चालू कर दियो और म्हें दोनू तारीख 1/5/1951 सूं सन् 1952 रा आखिर तक सामिल कोम कियो जिण सूं कुल शब्द 113000 स्लिप कोपियां में लिखीजीया फेर समय रा हेरफेर सूं श्री पोकरण ठाकुर साहब री सहायता बंद हो गई। इण सूं सन् 1953 लगायत सन् 1956 तक 4 साल तक कोश रो काम बन्द रेयो।

इण कोश ने पूरो करण री म्हां दोनूं री पूरी लगन ही। म्हें करनल श्री सामसिंहजी रोडला ने जून सन् 1956 में कोश में सहायता देण सारु कागद लिखियों उण रो जबाब उणां तारीख 29/6/56 रा कागद में म्हने लिखियों के कोश सारु मावार रु. 50/-, 3 या 4 साल तक या कोश पूरो होवे जठा तक दे सकूंला। परन्तु उणारा पिता करनल श्री अनोपसिंहजी बीमार हो गया इण वास्ते सहायता चालू में देरी हुई। उणां रे स्वर्गवास होणे रे बाद में मास नवम्बर रा अन्त में ने दिसम्बर रा सरु में जोधपुर में हा जद कर्नल श्री सामसिंहजी कोश री मदत बाबत बातचीत करण ने दोयवार म्हारे मकान पर आया और फिर सहायता देणी चालू कर दीवी।

कोश रो काम उणां री सहायता सूं सन् 1957 री जनवरी सूं सीतारामजी जोधपुर में चालू कर दिया क्योंकि जद उणां रो तबादलो जोधपुर में हो गयो हो। जो एक लाख तेरह हजार शब्दों री स्लिप कोपियां पेली बणी हुई ही। उणारी स्लिपां काट-काटकर अक्षरवार अलग-अलग कर दी गई ने नवा शब्द भी जो मिलिया वे शामिल कर दिया गया। इणतरे सब शब्द अक्षरवार किया जाय ने उणां ने अक्षरवार रजिस्टरों में लिख लिया गया। इणतरे कोश सन् 1958 री माह मई तक पूरो हो गयो। म्हें पैली री तरे सीतारामजी रे साथ हर तरह रो सहयोग ने मदत राखी ने काम कियो ओ कोष करनल श्री सामसिंहजी री रुपीया री सहायता सूं पूरो हुवो।

इणरे बाद प्रेस कापी बणावण रो काम चालू हुवे। उणरे खरचे रो प्रबन्ध ठाकुर श्री गोरधनसिंहजी मेड़तिया खानपुर वाला श्री झालावाड़ दरबार सूं श्री नीबांज ठाकुर साहब सूं रुपियां री सहायता लेने करायो ने करे छपण रो प्रबन्ध राजस्थानी सोध संस्थान चोपासणी जोधपुर सूं हुवी ने तारीख 11/3/1956 ने सीतारामजी ने इण सोध संस्थान शिक्षा विभाग सूं लोन पर ले लिया जद सूं वे इण संस्थान में काम करण लागा।

इण कोश ने तैयार करावण में व्युत्पति विभाग पूरो करावण में स्वर्गीय पं. नित्यानन्दजी शास्त्री जोधपुर की घणी मदत ही इण वास्ते बैकुंठवासी विदवान ने घणा धन्यवाद देवां हां। तारीख 22/5/1957 ने लिख दय्या नीचे मुजब हो :

चांद बावड़ी
ता. 22/5/1957

सीतारामजी लालस ने राजस्थानी कोश की रचना की है। यह भारी कठिन कार्य का यन्त्र श्री उदयराजजी उज्जवल यन्त्री (मेकेनिक) के बल संचालित हुवा है। मैंने इसे देखा इन्होंने प्रत्येक शब्द और धातु को जांचकर उनके प्रयोज्य सब प्रकार के प्रयोगों को प्रदर्शित किया है क्योंकि इन्होंने संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश विविध भाषाओं के बल पर यह कार्य भार उठाया है। बीच-बीच में हर समय मेरे साथ विचार-विमर्श करते हुए आपने पूर्ण परिश्रम करके इसे रचा है। ऐसे कठिन कार्य को पार करने में श्री सीतारामजी की ही पूर्ण कृपा ने सहायता की है। आशा है राजस्थान की जनता इससे लाभ उठाकर इस कोश की त्रुटि की पूर्ति से पूर्ण संतुष्ट होगी और श्रम को समझने वाले विद्वान कार्य प्रशंसा करेंगे। फकत नित्यानंद शास्त्री।

इणी तरे ननण विश्वविद्यालय सूं डॉ. डब्लू. एस. एलन जो संसार री करीब चालीस भाषाओं रो जाणकार है ने अन्तरराष्ट्रीय ख्याती रा भाषा शास्त्री है वे राजस्थानी भाषा रे ध्वनी विज्ञान संबंधी जांच वो शोध रो काम सारु सन् 1952 में राजस्थान में आया हा ने जोधपुर में दोय मास ठहरिया हा ने भाषा रे सिलसिले में म्हारे कने घणा आता उणांने म्हे ने सीतारामजी दोनू कोश वाली स्लिप कोपियां राय रे वास्ते म्हारा मकान पर दिखाई ही उणां म्हारो उत्साह बधायो उणां री सम्मति नीचे मुजब है :-

Thinity College, Cambridge

26 Feb. 1960.

It is excellent news for Indo-Aryan Linguistics that the Rajasthani Dictionary of Shri Udayraj Ujjwal and Shri Sitaram Lalas is now to be published. Rajasthani has long presented a serious gap in the comparative study of the vocabulary of the Indo-Aryan Languages and now at last it is filled by the devoted work of two Rajasthani Scholars and the support of their distinguished Sponsors. I know well and difficulties that have beset the undertaking of this task and its completion is, therefore, all the more monumental to the courage of those who conceived the project and brought it to fruition. With this work added to the grammar by Shri Sitaramji, the status of the Rajasthani language can no longer be denied.

Sd. W. S. Allen. M. A. P. H. D.
Professor of Comprative Philology
In the University of Cambridge.

कोश दोय दातार राजपूत सरदारों री रुपीया री मदत सूं शुरू होय ने पूरो बणियो इण वास्ते पुरानी प्रथा रे माफक महे ता. 26/6/1957 ने इण बाबत काव्य गीत, कवित, रचियो ने सीतारामजी कने भेजीया वे अठे दिया जावे है इणा ने दोनूं सरदारों रो धन्यवाद रे तौर पर वर्णन है। इण गीत री सीतारामजी पत्रों में तारीफ की है।

।।’गीत’ राजस्थानी में।।
कोम मरू बाणरो सुणे बण्यो नह किणी सू,
लाख शब्दो तणे बडो लेखो

गया भूपात कवराज गुण गावता,
दियो नह ध्यान इण हेत देखो।।1।।

खूटगा खजाना नरेसो देखता,
गया तजमाल ठकरेत गाढा।

सेव साहित्य री वणी न किणी सू,
लागता पंथ धन छोड़ लाडा।।2।।

सेव साहित्य ही रहे संसार में,
सुजसफल लागवे घणी सरसे।

मिले सुखलाध हितकर चित समाजां,
दिनों दिन कितां सनमान दरसै।।3।।

पांण मरू बांन है प्रांत रो परंपर,
वेण परताप राजस्थान ऊचों।

रखी नह पढण में भायखां प्रांतरी,
निरखतां जाय है प्रांत नीचों।।4।।

वणई चारणों व्याकरण विधोवित्र,
बणेगौ कोश ही लाख सबदो।

सीत रो परिश्रम अधग फलियों सिरे,
रेटियो ‘उदय’ मिल सकल सबदो।।5।।

पोकरण भवानीसीह चापे प्रथम
कोश रे हेत धन खर्च कीयो।

पडता लांच इण समेरा फेर सू,
स्यामंसी रौडले कांम सीधी।।6।।

रोडले स्यामसी सपूतो सिरोमण,
कमवज आज अखियाज कीधी।

वार विपरीत में हजारो खरचवे,
दाद ऊजल ‘उदे’ देस दीधी।।7।।

चारणा दोय मिल व्याकरण कोश रचि,
वण्या नह बडो कवराज मिलियो।

कमधा दोय मिलकियी सुभकांमजो,
महीयो कियो नह बीस मिलियो।।8।।

।।कवित।।
सूर्यमल मिशण से बनाया वंस भास्कर
बूंदी नृपराम ने खजाना खोल करके।

सावल कविराज ने लिखाया इतिशास त्योही
उदियापुर रान के कोष बल धरके।

सीताराम लालस ने कीन राजस्थानी कोश,
उदयराज उज्जवल के योग शक्ति भरके।

पोकरण भवानीसिंह स्यामसिंह रोडला के
कोश हित कोष बने दानी धनवधर के।

प्रान्त की प्रबल भाषा प्रतिष्ठित परंपरा
बिबुधन दीनमाल वीरपद वाला है।

शिक्षा को माध्यम निज प्रान्त हुँ में रखी नहीं
होय कोटि जनता को दास गति डाला है।

डूबत है मात्र भाषा वीर राजस्थान केरी,
प्रान्त का भविष्य याते दर्शित विदाजा है।

जीवित उहेगी प्रीय राजस्थानी आशामात्र,
व्याकरण कोश याके बनेगे जिशाला है।

~~Sd. ह. उदयराज उज्वल
Sd. Nemi Chand Jain (Civil Judge, Jodhpur.)
Sd. Bhawar Singh
Sd. लक्ष्मीप्रकाश गुप्ता

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